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हमारा स्वभाव सफलता का मूल कारण है | बोलता है चार प्रकार के स्वभाव हम दैनिक जीवन में अनुभव करते हैं | आपका ब्राह्मण स्वभाव जब आप दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं सीखना चाहते हैं सिखाना चाहते हैं आत्म विकास के पथ पर आगे बढ़ना चाहते हैं, दया करुणा प्रेम सौहार्द आपके स्वभाव से प्रकट होता है| स्वाध्याय आत्म चिंतन मनन मंथन जब आपकी आदत हो जाती है | क्षत्रिय स्वभाव जब आप मेरे के भाव से भर जाते हैं | और जिसे आप मेरा कहते हैं उसे आप प्रोटेक्ट करते हैं | मेरा विचार मेरी सोच मेरी संपत्ति इत्यादि | जब हम वैश्य स्वभाव में होते हैं तो केवल मैं की बात करते हैं | मैंने ऐसा किया, मैं यह कर सकता हूं, इसमें मेरा क्या फायदा, मैं ये, मैं वो, मैं ऐसा, मैं वैसा | मैं व्यक्ति के जीवन के केंद्र पर होता है उसकी बातों का मूल विषय होता है मैं | और चौथा स्वभाव जो व्यक्ति अज्ञान में डूबा अपने स्वास्थ्य के खिलाफ, कर्म करता है| खुद को ही ठेस पहुंचाता है खुद का ही नुकसान करता है | अपने ही कर्मों से खुद को छोटा करता जाता है, खुद के जीवन को छोटा करता जाता है |
भगवान कहते हैं हमारे स्वभाव प्रकृति के तीन गुणों से प्रभावित होता | प्रकृति के तीनों गुण सत्व गुण रजोगुण और तमोगुण हमारे स्वभाव पर गहरा प्रभाव डालते हैं | इन तीनों गुणों के प्रभाव को समझ कर, हम अपने स्वभाव के अनुरूप कर्म करते हुए जब जीवन में आगे बढ़ते हैं तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है |
आज के इस सत्र में हमने प्रकृति के तीनों गुणों का स्वभाव पर पड़ने वाले प्रभाव पर बात की |
आप 18वें अध्याय के 36वें से 40वें श्लोक में इसके विवरण को देख सकते हैं |
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All by the grace of Guru ji,
Brahmleen Sant Samvit Somgiri Ji Maharaj.
By Kamlesh Chandraहमारा स्वभाव सफलता का मूल कारण है | बोलता है चार प्रकार के स्वभाव हम दैनिक जीवन में अनुभव करते हैं | आपका ब्राह्मण स्वभाव जब आप दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं सीखना चाहते हैं सिखाना चाहते हैं आत्म विकास के पथ पर आगे बढ़ना चाहते हैं, दया करुणा प्रेम सौहार्द आपके स्वभाव से प्रकट होता है| स्वाध्याय आत्म चिंतन मनन मंथन जब आपकी आदत हो जाती है | क्षत्रिय स्वभाव जब आप मेरे के भाव से भर जाते हैं | और जिसे आप मेरा कहते हैं उसे आप प्रोटेक्ट करते हैं | मेरा विचार मेरी सोच मेरी संपत्ति इत्यादि | जब हम वैश्य स्वभाव में होते हैं तो केवल मैं की बात करते हैं | मैंने ऐसा किया, मैं यह कर सकता हूं, इसमें मेरा क्या फायदा, मैं ये, मैं वो, मैं ऐसा, मैं वैसा | मैं व्यक्ति के जीवन के केंद्र पर होता है उसकी बातों का मूल विषय होता है मैं | और चौथा स्वभाव जो व्यक्ति अज्ञान में डूबा अपने स्वास्थ्य के खिलाफ, कर्म करता है| खुद को ही ठेस पहुंचाता है खुद का ही नुकसान करता है | अपने ही कर्मों से खुद को छोटा करता जाता है, खुद के जीवन को छोटा करता जाता है |
भगवान कहते हैं हमारे स्वभाव प्रकृति के तीन गुणों से प्रभावित होता | प्रकृति के तीनों गुण सत्व गुण रजोगुण और तमोगुण हमारे स्वभाव पर गहरा प्रभाव डालते हैं | इन तीनों गुणों के प्रभाव को समझ कर, हम अपने स्वभाव के अनुरूप कर्म करते हुए जब जीवन में आगे बढ़ते हैं तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है |
आज के इस सत्र में हमने प्रकृति के तीनों गुणों का स्वभाव पर पड़ने वाले प्रभाव पर बात की |
आप 18वें अध्याय के 36वें से 40वें श्लोक में इसके विवरण को देख सकते हैं |
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