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क्या आपको याद है वो ज़माना, जब टीवी पर सिर्फ एक चैनल आता था… दूरदर्शन?
ना रिमोट था, ना सौ-सौ चैनल्स…
लेकिन था इंतज़ार, परिवार, और संस्कृति से भरा हुआ मनोरंजन।
इस एपिसोड में हम चलेंगे 1980 के दशक की उस सुनहरी दुनिया में –
जहाँ चित्रहार के गीत, रामायण की आरती, बुनियाद की जड़ें और समाचार-वाचकों की गंभीर आवाज़ हमारे जीवन का हिस्सा थीं।
दूरदर्शन का अर्थ और उसका भाव
पहली बार टीवी आने की उत्सुकता
चिट्ठी, रंगोली, चित्रहार के दिनों की बात
बुनियाद, नुक्कड़, तमस, करमचंद जैसे धारावाहिक
मंजरी जोशी और वेद प्रकाश जैसे समाचार-वाचक
आज के शोरगुल वाले टीवी से तुलना
यह एपिसोड सिर्फ याद नहीं दिलाएगा,
बल्कि पूछेगा – क्या हमने कहीं अपनी सांस्कृतिक धरोहर खो दी है?
By Dhiren Pathakक्या आपको याद है वो ज़माना, जब टीवी पर सिर्फ एक चैनल आता था… दूरदर्शन?
ना रिमोट था, ना सौ-सौ चैनल्स…
लेकिन था इंतज़ार, परिवार, और संस्कृति से भरा हुआ मनोरंजन।
इस एपिसोड में हम चलेंगे 1980 के दशक की उस सुनहरी दुनिया में –
जहाँ चित्रहार के गीत, रामायण की आरती, बुनियाद की जड़ें और समाचार-वाचकों की गंभीर आवाज़ हमारे जीवन का हिस्सा थीं।
दूरदर्शन का अर्थ और उसका भाव
पहली बार टीवी आने की उत्सुकता
चिट्ठी, रंगोली, चित्रहार के दिनों की बात
बुनियाद, नुक्कड़, तमस, करमचंद जैसे धारावाहिक
मंजरी जोशी और वेद प्रकाश जैसे समाचार-वाचक
आज के शोरगुल वाले टीवी से तुलना
यह एपिसोड सिर्फ याद नहीं दिलाएगा,
बल्कि पूछेगा – क्या हमने कहीं अपनी सांस्कृतिक धरोहर खो दी है?

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