दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 100. पातञ्जल योग, सूत्र 1.7. प्रमाण- प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि।


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प्रमाण चित्तकी एक वृत्ति है। यह क्लिष्ट कैसे है और अक्लिष्ट कैसे है, इसका विवेचन। योगसाधनामें पहले क्लिष्ट प्रमाण को रोककर अक्लिष्टकी सहायता से आगे बढ़ते हैं तदुपरान्त अक्लिष्ट का भी त्याग कर देते हैं। दोनों प्रकार के प्रमाणों का निरोध करना होता है। प्रमाण तीन प्रकार के होते हैं - प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम। प्रमा +ण = प्रमाण । प्रमा कहते हैं यथार्थ ज्ञान को। प्रमाणका अर्थ है कि जो वस्तु जैसी है उसे वैसा ही जान लेना।
शास्त्रों में तर्क और विज्ञान नहीं खोजना चाहिये। क्योंकि जो तर्कातीत है वही वेद-शास्त्र में कहा है। तर्क अथवा विज्ञान प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण पर आधारित होता है जबकि वेद-शास्त्र उस सत्यका प्रतिपादन करते हैं जिसे प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण से नहीं जाना जा सकता।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati