*एक लक्ष्यमें शान्तिपूर्वक चित्त को निरन्तर प्रवाहित करनेके लिये किये गये प्रयास को अभ्यास कहते हैं।
*अभ्यासका प्रयोजन है - चित्तवृत्तियोंका निरोध।
*मनुष्य को अस्वाभाविक अभ्यास करना ही नहीं है। जो स्वभाव है उसीको पाना है। उसमें जो विकार आ गये हैं उन्हे दूर करने का अभ्यास करना होता है।
*अभ्यासमें श्रद्धा और निरन्तरता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।