ईश्वरप्रणिधान क्या है?
*अपने अधिकार और अभिरुचिके अनुसार प्रणव अथवा ईश्वरके किसी नामका जप और उसके अर्थ का चिन्तन ईश्वर प्रणिधान है। ईश्वरप्रणिधानाद्वा(सूत्र 23), तज्जपस्तदर्थभावनम्(सूत्र 28), यथाभिमत ध्यानाद्वा (सूत्र 39)।
*साधना आगे बढ़ने पर जप और ध्यान एक साथ नहीं चल पाता।