दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 168. पातञ्जल योगसूत्र - ईश्वरकी परिभाषा(भाग 2)


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"अभिनिवेश"- मरणभय रूप भय को अभिनिवेश कहते हैं। यह भय जन्मजन्मान्तर के संस्कार का परिणाम है। पहले मरनेका अनुभव कर चुके हैं, इसीलिये मरने से डर लगता है।
*"कर्म"की परिभाषा- "कर्माशुक्लाकृष्णं योगिनस्स्त्रिविधमितरेषाम्" (सूत्र 4.7) - योगियोंके कर्म पाप-पुण्यरहित होते हैं। अन्य लोगोंके तीन प्रकार के होते हैं - पाप, पुण्य और मिश्रित।
*विपाक"- "सतिमूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगा:"(2.13)- उन कर्मों के आधार पर जाति (योनि), आयु और सुख-दुःख भोग प्राप्त होते हैं।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati