दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 172. योगसूत्र- "तस्य वाचकः प्रणवः"भाग -2. अ ऊ म=जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति=ब्रह्मा विष्णु महेश।


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वस्तुतः प्रणव केवल ध्यानका विषय है। इसका सटीक उच्चारण सम्भव नहीं। प्रणव स्वयं ध्वन्यात्मक है। यह कोई वस्तु नहीं जिसको नाम रूप से पहचाना जा सके। कोई क्रिया होती है तो ध्वनि उत्पन्न होती है। सृष्टि की उत्पत्तिके समय की प्रथम ध्वनि है प्रणव।
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
सामान्यजन दृश्यका ध्यान करते हैं, योगी द्रष्टा का ध्यान करते हैं।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati