दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 174. तस्य वाचकः प्रणवः (भाग 4) *माण्डूक्य के अनुसार प्रणवकी व्याख्या।


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*अहं की व्याख्या। समस्त ब्रह्माण्ड का बोधक है - अहम्। अ से ह तक में ही समस्त चराचर जगत है।
* अहं का एक अर्थ है- जिसका हनन न किया जा सके और जो किसीका हनन न करता हो।
*अहं अविनाशी और अविनाशक है।
*अहं का अर्थ प्रणव हुआ । अहं का अर्थ ब्रह्म हुआ।
*सृष्टिकी प्रथम ध्वनि है प्रणव।
*प्रणवके विभिन्न अर्थ अगले एपिसोड में.....।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati