दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 185. पातञ्जल योग, सूत्र 1.34 - प्राणायाम।


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*प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य का अर्थ।
*व्यवहार में भी स्वाभाविक रूप किसी विशेष परिस्थितिमें एकाग्र होने पर श्वास रुक जाती है और बाहर जाकर रुकती है, भीतर नहीं।
*चित्त रूपी बृक्ष के दो बीज हैं- प्राण और वासना। इन दोनों में से एक का नियंत्रण होने पर दूसरे का भी नियंत्रण हो जाता है। दोनों के लिये अभ्यास करना चाहिये।
*श्वास और प्राण में अन्तर है। श्वास प्राण नहीं है, अपितु प्राणका कार्य है।
*योग-वेदान्त की भाषा में प्राण जड़ पदार्थ है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati