(नोट- पातञ्जल योगसूत्र में बताये गये "तस्य वाचकः प्रणवः" सूत्र की व्याख्या के क्रम में यह 10वीं कडी़ है। इससे पूर्व "निद्रा" की व्याख्या के क्रम में माण्डूक्य उपनिषद की "सुषुप्ति" को सम्मिलित करते हुये लगभग 40-45 प्रवचन हो चुके हैं, उन्हेभी प्रणव की ही व्याख्या समझनी चाहिये।)
*नवधा भक्ति में प्रथम है सत्संग और मध्यमें है जप।
*प्रणव और राम एक ही हैं।
*महादेवके ध्यान का रूप।
*पंचाक्षर मंत्र का पांच लाख जप
*महादेव की विश्वरूपता
*ब्राह्मण, क्षत्रिय इत्यादि को वर्णक्रम से जप का फल। मन्त्रवैश्य, मन्त्रक्षत्रिय और मन्त्रब्राह्मण इत्यादि।
*जप से क्रमशः वर्णोन्नति। स्त्रीको पुरुषत्व,शूद्रको वैश्यत्व, वैश्यको क्षत्रियत्व और क्षत्रिय को ब्राह्णत्व की प्राप्ति।