दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 197. योगसूत्र 2.1 - क्रियायोग की परिभाषा। तपः स्वाध्याय ईश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः।


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*देखादेखी साधै योग। छीजे काया बाढै़ रोग।।
*प्राणायाम करते समय वायु को खींचकर पेट में भरें, फेफडे़ में नहीं।
*क्रियायोग की परिभाषा। तप स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान - यही क्रियायोग है।
*तप का मुख्य अर्थ है स्वधर्म का पालन अर्थात् अपने वर्णके लिये निर्धारित कर्तव्य करना।
*स्वाध्याय में पठन पाठन श्रवण जप चिन्तन मनन सत्संग इत्यादि भी सम्मिलित हैं।
*ईश्वर प्रणिधान का अर्थ।
*भगवान् को मानते हैं तो भगवान् के आदेश भी मानें। उनके आदेश हैं - वेद-शास्त्र।
*स्वधर्म को छोड़कर शरीर इन्द्रिय मन को तपाना तप नहीं है। यह आसुरी प्रवृत्ति है।
*शरीर को अधिक कष्ट देना तप नहीं है। ऐसा करना तो योग का बाधक होगा।
*उचित आहार विहार निद्रा इत्यादि का सेवन करने का ही योग सिद्ध होता है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati