दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 199. वर्णनिर्धारण (भाग 7) - महा, अनु १२१.७ आश्वमेधिक १६४.११-१२, ३६.२७-३१


Listen Later

*वर्णका मुख्य निर्धारण जन्मना है। ब्राह्मण के लिये जन्म के अतिरिक्त अन्य दो तत्व हैं तपस्या और शास्त्रज्ञान। जन्म, तप और शास्त्रज्ञान -यह तीनों जिसमें हैं वह शुद्ध ब्राह्मण है।
*वर्ण व्यवस्था का एक उद्देश्य यह है कि सब लोग अपने अपने धर्मका पालन करते हुये पुनः एकत्व को प्राप्त हों।
*सङ्कल्प ही गुरु है।
*तिर्यक् योनि और अर्वाक्स्रोता का अर्थ - नीचेकी ओर जिसकी गति होती है।
*कर्मानुसार जन्म जन्मान्तर में क्रमशः उच्चयोनि का मिलना।
*शुक्राचार्य के अनुसार :- प्राणियों के 6 वर्ण (रंग)। 14 करणों (5 ज्ञानेन्द्रिय 5 कर्मेन्द्रिय और चार अन्तःकरण) के भेद से 14 प्रकार की गति होती है। पुनः विषय भेदसे चित्तवृत्ति में भेद के आधार पर 14 लाख योनियां प्राप्त होती हैं। स्वर्ग नरक और तिर्यक् इत्यादि योनियां भी इन्ही 14 करणों द्वारा प्राप्त होती हैं। जीव मनुष्य से देवता और देवता से मनुष्य होता रहता है और कर्मानुसार मनुष्ययोनि से नीचे भी गिरता है।
*पूर्वकल्प के अनुसार ही नये कल्प में योनि प्राप्त होती है।
*
...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati