दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 204. पातञ्जल योग, सूत्र 2.9 से 13. अभिनिवेश।कर्माशय। प्रारब्ध, क्रियमाण और संचित कर्म।


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इस एपिसोड में-
*अभिनिवेश - मरणभय ही अभिनिवेश है। पहले मर चुके हैं, वही अनुभव दृढ़ होकर भय उत्पन्न करता है। मरने से भय लगता है, यही इस बातका प्रमाण है कि यह जीव पहले भी मरने का अनुभव कर चुका है।
*शुभ- अशुभ दोनों कर्मों में रजोगुण की प्रधानता होती है।
रजोगुणके विना कोई क्रिया नहीं होती। इसका झुकाव सत्वगुण की ओर होता है तब पुण्यकर्म होते हैं और इसका झुकाव तमोगुण की ओर होता है तब पापकर्म होते हैं।
*जाति आयु और सुख-दुःख भोग की प्राप्ति कर्माशय के फलस्वरूप होती है।
*कर्माशय तब तक रहते हैं जब तक अविद्या रहती है।
अविद्या के नाश के साथ कर्माशय का भी नाश हो जाता है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati