*पुण्य और पापके आधार पर प्रारब्ध बनता है।
*कोई मनुष्य या प्राणी किसीको सुख-दुःख नहीं देता।अपना कर्म ही देता है। काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता।।
*दुःख के चार प्रकार।
*जिन दुःखों के बीज अभी अंकुरित नहीं हुये हैं, उन्हे नष्ट किया जा सकता है - हेयं दुःखमनागतम् -सूत्र १६.