दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 213. पातञ्जल योग, सूत्र २.१७- हेयं दुःखमनागतम्। अनागत दुःख को नष्ट कर सकते हैं।


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*जो दुःख अभी आया नहीं अर्थात् जिसके बीज अंकुरित नहीं हुआ अर्थात् संचित कर्म के रूप में है अर्थात् जो दुःख वर्तमान जीवन के लिये आबंटित नहीं हुआ , उसे नष्ट किया जा सकता है।
*प्रारब्ध अर्थात् वर्तमान जीवनके लिये आबंटित दुःखको कैसे प्रभावहीन करें।
*प्रारब्ध को मिटाने के लिये तन्त्र इत्यादि शार्टकट उपायों और चमत्कारों के फेर में न पडे़ं।
*भावी दुःख को नष्ट करने का उपाय -वेदान्त में ज्ञान तथा योग में द्रष्टा और दृश्य के संयोग का विच्छेद है। दोनों एक ही बात है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati