दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 216. पातञ्जलयोग,सूत्र २.२०,२१,२३- आत्मतत्व को द्रष्टा क्यों कहते हैं?द्रष्टा संज्ञा कब तक रहती है?


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*दृश्य अर्थात् सृष्टि अथवा प्रकृतिका उद्देश्य जीव को बन्धनमें डालना नहीं, अपितु बन्धनसे निकालना है।
*प्रकृतिका अपना कोई उद्देश्य नहीं होता। वह पुरुष (जीव)को भोग और मोक्ष देने के लिये है।
*जब तक भोग और अपवर्ग की प्राप्ति शेष है तभी तक पुरुष की द्रष्टा संज्ञा है।
*जिसका भोग मोक्षका प्रयोजन पूर्ण हो गया उसके लिये इस दृश्य का कोई अर्थ नहीं रह जाता। प्रयोजनके पूर्ण होने तक और अन्य जीवों के लिये यह दृश्य बना रहता है।
*द्रष्टा-दृश्यका संंयोग क्या है? पिछले एपिसोड में स्व-स्वामि कहा गया उसमें स्व प्रकृति है और स्वामी पुरुष है। अविद्या के कारण दोनोंका संयोग होता है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati