*शौच का पालन करने से अपने अंगों से और दूसरों के संसर्गसे वितृष्णा हो जाती है। अपने शरीर की वास्तविकता का ज्ञान होकर उससे राग समाप्त हो जाता है।
*आन्तरिक शौच से चित्तशुद्धि और मन की एकाग्रता होती है। फलस्वरूप आत्मदर्शन की योग्यता आ जाती है।
*संतोष का फल। संतोषादनुत्तम सुखलाभः।
*तप से शरीर और इन्द्रियों की शुद्धि होती है। फलतः अणिमा। दूरदृष्टि इत्यादि सिद्धियां आने लगती हैं।
*स्वाध्याय के सिद्ध होनेसे इष्टदेव का साक्षात्कार होता है।
*ईश्वरप्रणिधान से समाधि की सिद्धि होती है। समाधि सिद्ध होने पर योगी देशान्तर देहान्तर और कालान्तर में प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।