*आसन के दो अर्थ- बैठने की पीठिका और दूसरा शरीरकी स्थिति।
*योगासन के नाम पर जो भांति भांति के आसन आजकल बताये जाते हैं , वे आसन की परिभाषा में नहीं आते। उन्हे व्यायाम कह सकते हैं।
*भगवद्गीता और श्वेताश्वतरोपनिषद के अनुसार आसन की परिभाषा।
*भगवद्गीता में बताये गये "चैलाजिन कुशोत्तरम्" का अर्थ।
*चैलाजिन कुशोत्तरम् का नियम संन्यासी के लिये नहीं।
*"समं कायशिरोग्रीवं" ।
*नासिकाग्र किसे मानें- नासिका की नोक को अथवा भ्रूमध्य को जहां से नासिका आरम्भ होती है?