दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 223. पातञ्जल योग, सूत्र 2.46 - अष्टाङ्गयोग के तीसरे अङ्ग "आसन" का अर्थ।


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*आसन के दो अर्थ- बैठने की पीठिका और दूसरा शरीरकी स्थिति।
*योगासन के नाम पर जो भांति भांति के आसन आजकल बताये जाते हैं , वे आसन की परिभाषा में नहीं आते। उन्हे व्यायाम कह सकते हैं।
*भगवद्गीता और श्वेताश्वतरोपनिषद के अनुसार आसन की परिभाषा।
*भगवद्गीता में बताये गये "चैलाजिन कुशोत्तरम्" का अर्थ।
*चैलाजिन कुशोत्तरम् का नियम संन्यासी के लिये नहीं।
*"समं कायशिरोग्रीवं" ।
*नासिकाग्र किसे मानें- नासिका की नोक को अथवा भ्रूमध्य को जहां से नासिका आरम्भ होती है?
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati