दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 224. पातञ्जल योग, सूत्र 2.46-आसन (भाग2)। श्वेताश्वतरोपनिषद, मन्त्र 2.8-10की व्याख्या।


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*श्वेताश्वतरोपनिषद में कहे गये "त्रिरुन्नतं" और "समं शरीरं" से तात्पर्य।
*साधनाके लिये स्थान और समय का चयन।
*अपने ही आसन पर साधना करनी चाहिये।
*कूलर चलाकर योगसाधना करना उचित नहीं। इसमें वायु और ध्वनि दोनों का विक्षेप है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati