दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 225शिवमहापुराण। ब्रह्मा विष्णु महेश का अभेद। इनमें भेद मानना बन्धन का कारण है।


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*ब्रह्मा और विष्णु को सृष्टि एवं पालन हेतु शिवजी का आदेश।
*विष्णु शिवके बायें अंग से, ब्रह्मा दाहिने अंगसे प्रकट हुये हैं।
*विष्णु भीतर तमोगुण, बाहर सत्वगुण धारण करते हैं । रुद्र भीतरसे सत्वगुणी और बाहर से तमोगुणी हैं। ब्रह्मा बाहर भुतर दोनों ओर से रजोगुणी हैं।
*शिवकी आज्ञासे ही विष्णु अवतार धारण करते हैं और शिवकी शक्ति से ही कार्यसम्पादन करते हैं।
*शिवजी का आदेश है कि जो शिवभक्त विष्णुकी निन्दा करेगा उसके सभी पुण्य नष्ट हो जायेंगे।
*शिवजी द्वारा ब्रह्मा विष्णु और रुद्र की आयुका निर्धारण।
*शिवलिंग की पूजा का आरम्भ। शिवलिंग की एक व्युत्पत्ति यह है कि लयकारक होने के कारण इसे शिवलिंग कहते हैं।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati