दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E 226. पातञ्जल योग, सूत्र 2.47-50- आसन (भाग 3), प्राणायाम भाग-(2/1)


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*आसनके सिद्ध होनेका फल - द्वंद का आघात नहीं लगता। भूख-प्यास ठंडी गर्मी कम लगती है।
*पहले आसन का अभ्यास करें। आसन स्थिर होने के उपरान्त प्राणायाम आरम्भ करें।
*प्राणायाम और मन की स्थिरता अन्योन्याश्रित हैं।
*श्वास प्रश्वास क्या है?
*बाह्य कुम्भक और आन्तरिक कुम्भक के प्रभाव में अन्तर।
*आसन सिद्धि अपने आपमें फल नहीं है, अपितु प्राणायाम की सिद्धि का उपाय है।
*प्राणायाम की क्षमता का आकलन और बढा़ने का अभ्यास कैसे करें।
*पूरक क्रिया में श्वासको फेफडे़ में नहीं, अपितु पेट में भरना चाहिये। नाभि तक श्वास ले जाकर वहां ध्यान केन्द्रित करना चाहिये।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati