दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E शिव 169. संन्यासी पर दया करनेका अपराध न करें। सन्यासीको जो कुछदें वह सेवाभावसे दें, दयाभावसे नहीं।


Listen Later

इस एपिसोडमें -
*न्याययुक्त उपार्जित धन के उपभोग से वैराग्य का भी उदय हो जाता है।
*कलियुग में धर्म धनसाध्य है। सत्ययुग में ध्यान, त्रेतामें तपस्या, द्वापरमें यज्ञ का और कलियुगमें दानका विशेष महत्व है। येनकेन विधि कीन्हे दान करै कल्यान।
*धर्मके चार चरण- सत्य तप दया और दान।
*भोक्ता द्वारा किये गये पुण्यका आधा भाग दाता को प्राप्त होता है। जिसको दान किया जाता है वह व्यक्ति जब तक उस अन्न अथवा वस्तु का उपभोग करता है तब तक उसके द्वारा किये गये पुण्यका आधा भाग दाता को प्राप्त होता है।
...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati