इस एपिसोडमें -
*न्याययुक्त उपार्जित धन के उपभोग से वैराग्य का भी उदय हो जाता है।
*कलियुग में धर्म धनसाध्य है। सत्ययुग में ध्यान, त्रेतामें तपस्या, द्वापरमें यज्ञ का और कलियुगमें दानका विशेष महत्व है। येनकेन विधि कीन्हे दान करै कल्यान।
*धर्मके चार चरण- सत्य तप दया और दान।
*भोक्ता द्वारा किये गये पुण्यका आधा भाग दाता को प्राप्त होता है। जिसको दान किया जाता है वह व्यक्ति जब तक उस अन्न अथवा वस्तु का उपभोग करता है तब तक उसके द्वारा किये गये पुण्यका आधा भाग दाता को प्राप्त होता है।