दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E192. पातञ्जल योगसूत्र/महाभारत। प्राणायाम भाग-5. प्राण और प्रणव की सन्निकटता।


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*महाभारत के अनुसार सांख्य के समान ज्ञान नहीं और योग के समान बल नहीं।
*प्राणायाम मन की एकाग्रता का सहायक है।
*प्राणायाम भी सगुण निर्गुण दो प्रकार का होता है।
*प्राण और प्रणव की सन्निकटता।
*प्राणमें प्रणव की भावना।
*प्राण को रुद्र भी कहते हैं क्योंकि यह मरने वालेको और उसके परिजनों को कष्ट देता है-रुलाता है। जनमत मरत दुसह दुःख होई।
*पहले सगुण प्राणायाम करें। सगुण मन को निर्गुण करने में सहायक होता है। ध्यानरहित प्राणायाम नहीं करना चाहिये।
*योगी की पहचान- उसकी वृत्ति स्थिर रहती है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati