दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E209 पत.2.१४ - कर्माशयके फलस्वरूप प्रप्त जाति,आयु और भोग सुखद दुःखद दो प्रकारके होते हैं।


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*निकृष्ट योनियों में जन्म मिलना भी ईश्वरकी कृपा है। *निकृष्ट योनियोंकी विशेषता।
*चाहे जितनी भी निकृष्ट योनिमें कोई पडा़ हो, अपना शरीर प्रत्येक जीव को प्यारा होता है और उसी को वह धारण किये रहना चाहता है।
*कोईभी प्राणी सुख-दुःखका अनुभव अपने शरीर के कारण नहीं, अपितु उस शरीर के अनुकूल प्रतिकूल भोगों के मिलने या न मिलने के कारण करता है। इस सबका कारण उसके पूर्वजन्मों का कर्म होता है।
*अपना किया कर्म ही जन्मान्तरमें लौटकर सुख-दुःख देता है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati