*गुरु द्वारा बताये मंत्र और मार्ग से ही सिद्धि प्राप्त होती है। केवल पुस्तक से जानकारी लेकर मनमाने ढंगसे मंत्र जपनेसे अनर्थ ही होता है।
*भक्ति का मूल सत्कर्म और इषटपूजा, सत्कर्म के मूल गुरु हैं और गुरु का मूल सत्संग है।
*क्रम से ही आगे बढ़ने में कल्याण है। जैसे विना हाईस्कूल माध्यमिक स्नातक इत्यादि उत्तीर्ण किये पी एचडी नहीं कर सकते, उसी प्रकार विना भक्ति किये, विना सगुण उपासना किये सीधे वेदान्त की बात करना अनर्थकारी है।
*जब तक गृहस्थाश्रम में हैं, तब तक पञ्चदेवपूजन अवश्य करना चाहिये।
*ज्ञान होने पर द्वन्द नष्ट हो जाते हैं।द्वन्दके नष्ट हो जाने पर दुःखका नाश हो जाता है।
*ज्ञानी भी लोकसंग्रह के लिये उपासना करते हैं।
*ज्ञानीका दर्शन परमात्मा के दर्शनके बराबर है।
*शिव के पूजनसे सभी देवताओं का पूजन हो जाता है।