(नोट - सूत्र 1.34 "प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य" की व्याख्या में भी प्राणायाम पर अनेक प्रवचन किये जा चुके हैं।पूर्ववर्ती कडि़यों में खोज लें।)
*कुम्भक के समय नाभिचक्र पर ध्यान केन्द्रित करें
*रेचक के समय ध्यान करना विशेष महत्वका है। विना इष्टदेवका ध्यान किये रेचक करने से वातदोष बढ़ता है।
*पूरक कुम्भक और रेचक में लागाये जाने वाले समयका आदर्श अनुपात - 1:4:2. सावधानी से अनुपात का निर्धारण करें। कुम्भक में सहजता से जितनी देर श्वास रोक सकते हैं, उतने ही समय तक रोकें। सहनशक्ति की अन्तिम सीमा की प्रतीक्षा न करें।
*समय की गणना का सर्वाधिक उचित माध्यम क्या है।