दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E231. शिवमहापुराण, 2.12. शिवपूजन की विधि। शौचाचार सम्बन्धी कुछ नियम।


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*प्रातःस्मरण-
"उत्तिष्ठोत्तिष्ठ देवेश उत्तिष्ठ हृदयेश्वर।
उत्तिष्ठ महास्वामिन् ब्रह्माण्डे मङ्गलं कुरु।।
जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिः,
जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।
त्वया महादेव हृदिस्थितेन,
यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।।"
*किन दिनों तथा अवसरों पर उष्ण जल से स्नान वर्जित है?
*नदीस्नान जिधर से प्रवाह आ रहा हो उधर मुख करके करें।
अन्य स्थान पर पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके।
*सुगन्धित तैल के लिये दिन की वर्जना नहीं होती।
*शुद्ध वस्त्रधारण कर स्नान करना चाहिये।
*ऊन का आसन गृहस्थों के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है।
*भस्म के अभावमें जल से त्रिपुण्ड धारण की विधि भस्म के ही समान है।
*शिवपरिवार का पूजन करने के उपरान्त शिवपूजन करें।
*प्राणायाम मूलमंत्र से करें।
*ध्यान हेतु शिवका स्वरूप।
*बिल्वपत्र का सर्वाधिक आवश्यक है।
*तुलसीदल - विशेष ध्यातव्य - शिवपुराण के अनुसार, तुलसीपत्र भी शिवपूजन की सामग्रियों में सम्मिलित है।
*शिवजीकी आरती पाँच बत्ती की होनी चाहिये।
*आरती पैर में चार बार , नाभिमंडलके सम्मुख दो बार, मुखमण्डल की एक बार, सम्पूर्ण अंग की सात बार आरती उतारें।
*परिक्रमा विधि।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati