दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

E241. योग-वेदान्त। पातञ्जल योग, सूत्र 3.14-18


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*धर्म और धर्मी।
*अधिष्ठान रूपसे आत्मा सर्वत्र विद्यमान है। आत्मा धर्मी है, दृश्यपदार्थ उसके धर्म हैं। धर्मी धर्ममें अनुगत रहता है।
*मिट्टी अव्यपदेश्य अवस्था है घडा़ उदित अवस्था है और घडे़का टूटकर पुनः मिट्टी में मिल जाना शान्त अवस्था है।
*सृष्टि का क्रम समझ लेने से और धर्मी में ध्यान करने से सिद्धियां प्रकट हो जाती हैं, त्रिकालज्ञता आ जाती है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati