दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 248. पातञ्जल योग, सूत्र 4.3,6 सिद्धियां स्वतः सिद्ध हैं, सबके पास हैं।


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सिद्धियों को पानेके लिये प्रयास नहीं करना है, केवल आवरणों को हटाना होता है।
*सिद्धियां चल वस्तुयें नहीं हैं जो एक से दूसरे स्थान पर ले जायी जाती हों। किन्तु महर्षि पतञजलि उनकी उपमा खेत के जल से देते हैं। जल के स्वाभाविक बहाव में आने वाली बाधा को दूर करने से जल खेत में स्वतः फैल जाता है। उसी प्रकार सिद्धियों पर से बाधाओं को हटाना होता है।
*धर्म अधर्म की भी यही स्थिति है। धर्म कोई स्वतंत्र फल नहीं देता। अपितु, वह अधर्म रूपी बाधा को दूर कर देता है, फलतः शुभ का प्राकट्य हो जाता है। इसी प्रकार अशुभ के प्राकट्य के लिये अधर्म भी धर्मरूपी बाधा को दूर कर देता है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati