नारायण।
श्लोक 37-39 (पूर्ववर्ती एपिसोड 672) में बताये कि काम और क्रोध एक ही हैं और इस काम के द्वारा ही ज्ञान ढंका हुआ है।
यह काम ही ज्ञानका शत्रु है अतः इसको नष्ट करना आवश्यक है। 43वें श्लोक में अर्जुन को भगवान् आदेश देते हैं कि इस कामरूपी शत्रु को मार डालो - "जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्"। शत्रु को मारने के लिये उसकी पहचान और पता (Address) आवश्यक है। अतः चालीसवें श्लोक में काम का पता बताते हुये कहते हैं कि इसके निवासस्थान हैं - इन्द्रिय मन और बुद्धि। इन्ही तीनों के द्वारा शरीर की सभी क्रियायें होती हैं।अतः क्रमशः इन तीनों पर नियंत्रण करो। आगे अन्तिम दो श्लोकों में कहते हैं कि इन्द्रियों से परे मन है , मन से परे बुद्धि है और बुद्धि से परे आत्मा है। अतः आत्मा का आश्रय लेकर इन्द्रिय मन और बुद्धि में रहने वाले काम को मार डालो।