*जब कर्मके बन्धन शिथिल पड़ जाते हैं और स्थूल शरीर की नाडि़यों में सूक्ष्म शरीर के संचरण का ज्ञान हो जाता है तब किसी अन्य शरीर में भी प्रवेश करने की दक्षता आ जाती है।
*उदानवायु वशमें कर लेने से आकाशगमन , जल पर चलने इत्यादि की क्षमता आ जाती है।
*जब कर्मके बन्धन शिथिल पड़ जाते हैं और स्थूल शरीर की नाडि़यों में सूक्ष्म शरीर के संचरण का ज्ञान हो जाता है तब किसी अन्य शरीर में भी प्रवेश करने की दक्षता आ जाती है।
*उदानवायु वशमें कर लेने से आकाशगमन , जल पर चलने इत्यादि की क्षमता आ जाती है।