*अभ्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोधः। किस चीज का अभ्यास? किस चीज से वैराग्य? अभ्यास की प्रक्रिया क्या है?
*इन्द्रियोंकी पांच अवस्थायें - ग्रहण , स्वरूप, अस्मिता , अन्वय और अर्थवत्व। इन्द्रियां केवल भोगके लिये नहीं हैं। *इन्द्रियों की रचना का उद्देश्य है जीव को भोग और मोक्ष प्रदान करना।
*मन इन्द्रियों से स्वतंत्र नहीं है। इन्द्रियां भी मन के साथ मिलकर ही कार्य करती हैं।
*जितेन्द्रिय को ही सिद्धि प्राप्त होती है और वही दूसरे को दे भी सकता है।
*चित्त और आत्मा के अन्तर को जान लेने वाले को सर्वज्ञता और सर्वस्वामित्व प्राप्त हो जाता है।