*शिवजी द्वारा विष्णु को फटकार और विष्णु का स्पष्टीकरण।
*शंकरजी और जलन्धर का युद्ध। जलन्धर गन्धर्वीमाया का प्रयोग कर शंकरजी को मोहित करके फिर उन्ही का रूप धारण कर पार्वतीजी के पास गया।
*पार्वतीजी ने भगवान् विष्णु को बुलाकर उनको आदेश दिया कि जलन्धर ने छलपूर्वक दुराचार करने का प्रयास किया है अतः "शठे शाठ्यम् समाचरेत्" की नीति के अनुसार आप उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग कीजिये। उसका सतीत्व भंग होने पर ही जलन्धर का वध हो सकेगा।
*भगवान् विष्णुने मायाउत्पन्न कर वृन्दाको अपशकुन वाले स्वप्न दिखलाया, अगले दिन मुनिवेश में चमत्कार दिखलाते हुए दो बन्दरों के माध्यम से जलन्धर के सिर और धड़ को मंगाकर कहा कि युद्ध मे शंकरजी द्वारा जलंधर मारा गया। फिर वृन्दा की विनती पर जलन्धर को जीवित कर दिये। तदुपरान्त जलन्धर के वेश में रहकर वृन्दा का सतीत्व भंग किये।
*वास्तविकता ज्ञात होने पर वृन्दा ने भगवान् विष्णु को शाप दिया कि - तुमने माया से जिन दो राक्षसों को दिखाया वही दोनों वास्तव में राक्षस बनकर तुम्हारी पत्नी का हरण करेंगे और तुम वन-वन भटकते हुये बन्दरों से सहायता मांगोगे। ऐसा कहते हुये वह अग्नि में प्रवेश कर गयी।
*भगवान् विष्णु वृन्दा के चिता की भस्म धारण करके उसके वियोग में व्याकुल रहने लगे।