दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

Episode 641 भगवद्गीता,3/25-28 - आत्मज्ञान होने पर भी गृहस्थको कर्म करते रहना चाहिये।


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*आत्मज्ञान होने पर भी लोकसंग्रह के लिये गृहस्थ को शास्त्रविहित कर्म और सन्यासी को ब्रह्माभ्यास तथा वेदान्तका अध्यापन इत्यादि कर्म करते रहना चाहिये।
*आत्मज्ञान दृढ़ होता है तो कर्मकाण्ड स्वतः छूटने लगता है। किन्तु जिनका संन्यासमें अधिकार नहीं, उन्हे कर्मकाण्ड छोड़ना नहीं चाहिये और जिनको आत्मज्ञान नहीं हुआ है , उनको कर्ममें लगाये रखने के लिये स्वयं भी कर्म करते रहना चाहिये।
*नासमझ को कर्मविमुख कर वेदान्तज्ञान देने से उसका पतन हो जाता है। क्योंकि वह ज्ञानमार्ग को पकड़ नहीं पायेगा और कर्ममार्ग से भी हट जायेगा। भक्तिको यहां कर्म में सम्मिलित समझना चाहिये। जो नासमझ को ब्रह्मज्ञान देता है, वह उसका उद्धार नहीं करता, अपितु उसे महानरक में ढकेलता है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati