सुख दुःख क्रोध इत्यादि का अनुभव तीनों गुणों -सत्व रज तम के असंतुलन का परिणाम है। सुख दुःख क्रोध इत्यादि का अनुभव चित्त करता है, हम आप नहीं। .... सूक्ष्म शरीर का संगठन कैसे होता है ? इन्द्रिय वह (हाथ पैर आंख कान इत्यादि) नहीं जिसे सामान्य मनुष्य समझते हैं, यह सब तो इन्द्रियों के उपकरण अथवा रहने के स्थान हैं। हम यह सब नहीं हैं। तो क्या हम वह हैं जो इसमें रहता है ? नहीं वह आपका सूक्ष्म शरीर है जो इनमें रहता है। फिर क्या हम सूक्ष्म शरीर हैं ? नहीं, हम उसके भी द्रष्टा हैं। सूक्ष्म शरीर चित्तवृत्तियों का परिणाम है, हमारा स्वरूप नहीं। चित्तवृत्तियों के समाप्त होने के उपरान्त हमको अपने स्वरूप का ज्ञान होता है। चित्तवृत्तियों का निरोध ही योग है और स्वरूपका ज्ञान योगका फल है।