14th सेंचुरी में जो कॉफी यमन में जन्मी वो डेढ़ सौ साल बाद तुर्की की गलियों में जा पहुंची. खूब कॉफी हाउसेज़ खुले. उन दिनों तुर्की के इस्तांबुल में झंडा बुलंद था ऑटोमन अंपायर के मुराद फोर्थ का. मुराद जवान था, तानाशाह टाइप भी. कॉफी का चस्का इस्तांबुल के लोगों को ऐसा लगा था कि वो दिनरात कॉफी हाउस में बैठे रहते. फिर क्या हुआ ऐसा कि मुराद ने कॉफी हाउस जाने पर सजा का ऐलान कर दिया? सुनिए कॉफी का इतिहास 'इति इतिहास' में नितिन ठाकुर से.