श्री हरि की उत्पत्ति करके, उनको वेद ज्ञान सौंप कर, आनंद कानन में शिवा संग विहार पर चले गये महादेव. श्रेष्ठ की आज्ञा शिरोधार्य कर हरि पचास सहस्त्र वर्षों की तपस्या में लीन हो गये. जब तप बल से उनका शरीर सूख कर जलने लगा और उसके ताप से सृष्टि व्याकुल होने लगी तब दिव्य नेत्रों से इस घटना को देख कर महादेव ने नारायण से तप को रोकने का आग्रह किया. और चक्र परिष्करण कुंड को मणिकर्णिका नाम देकर उस जलाशय के और मणिकर्णिका स्थल के महत्व को बताया शिव शंभू ने. जो स्कंद पुराण में काशी खंड में वर्णित है. आगे किसी और नाम और रहस्य से उठेगा पर्दा सुनते रहिये और सुनाते रहिये... कहानी सुनाना यह परंपरा है हमारी. यह भावी पीढ़ी की धरोहर है उनके लिए हर तरह से सहेज के रखना है इस सत्य को. शिव, काशी और तीनों लोकों की कथा कथा नहीं सत्य है भारत वर्ष का. हर हर महादेव...