किसी जमाने में
कन्या को प्रेम पत्र देना और जान की बाजी लगाने में कोई विशेष अंतर ना था। लेकिन दौर बदला
गुलाबी गुलाब, इत्र में डूबा ख़त और 5 रुपया वाला डेरी मिल्क । 90 के दशक तक ये फॉर्मूला माशूक और उसकी सहेली को रिझाने के लिए रामबाण हो गया। उदारवादी दौर में प्यार जैसी अमूल्य चीज भी बहुत सरल और सस्ती हो गई। आज इस कीमत में प्यार तो भूल ही जावो
फेसबुक पे माशूक का लोल वाला कमेंट और अँगूठा छाप वाला लाइक मिल जाये वही
#हैशटैग बड़ी बात है।
सन 2000 के बाद सबकुछ बदल गया। मोबाईल फोन से बात ही नहीं "इजहार ए मोहब्बत" करना भी बहुत ही सरल और सुरक्षित हो गया । Mango लovers या आम आशिकों के लिए ये बड़ा ही मिक्स-फ्रूट दौर था।
ये उन शुरूआती दिनों की बात है जब मोबाईल फोन आशिकों की जेब में और इंटरनेट उनकी पहुच में आया। इस दौर में आनलाइन फार्म भरने के अलावा लोग दिल्लगी करने भी साइबर कैफे जाने लगे थे। फेस बुक धीरे धीरे आरकुट की जान ले रहा था और प्रेमपत्र देने की रिवायत आखरी सांसे ले रही थी।
इसी दौर में
क्या तुमने बीएफ देखी है ?और क्या तुम वर्जिन हो? जैसें सवालों ने पहली बार एक लड़की ,जैसी तमाम लड़कियों को झकझोर दिया । क्योंकि इस देश में अब तक, लड़किया या तो विदाउट सेक्स कुंवारी होती थी या फिर सेक्स करने वाली शादीशुदा आर्दश महिला ।
बदलाव के इस दौर में लौण्डें पइसा मसक के मोबाईल फोन दनादन खरिद रहे थे तो वही दूर पढ़ाई करने वाली कन्याओं को सुरक्षा की गांरटी मानते हुए मोबाईल फोन बाटा जा रहा था।
अब प्यार,अहसास और छुअन के मायने बदल रहे थे और इसी क्रम में इमरान हाशमी, गले की छुअन वाले अहसास को ओठों तक लाने में कामयाब हो पाए । लिपलॉक ,फ्रेच किस और लिपकिस जैसें ,"कानफिडेशियल "शब्द बड़े आराम से बोले और समझे जाने लगे ।
मेरा जिगरी यार ज्वलंत कहता है कि
उस दौर में, यारा सिली-सिली प्यार के नाम से पुरा कोर्स चलाया जा रहा था ।
सिलसिले-वार तरीके से समझने की कोशिश करते है ।
सुपर सीनियर दीदी ,छोटी बहन और कन्या की परम सखी को केंद्र में रख कर , प्रेम समीकरण बनाये जा रहे थे । प्रेम त्रिकोण भी इसी गणित का एक हिस्सा था जिसको बॉलीवुड वालों ने खूब भुनाया ।
इसमे फायदा कम था लेकिन नुकसान ना के बराबर था । अमूमन इस दौर में भी लड़किया ,प्रेम जवाब देर से देती थी। काल और साल के बीच आशिक़ ,"हा"या "ना" की तलाश में एक ही जगह "सिकुड़" के रह जाता था।
दुश्वारियों का अंत नही था । सालों साल लड़की की हा और ना के बीच लौंडों को जालिम ,"ना "ही सुनने को मिलती थी। और बहाने भी चिंदीचोर वाले थे।
मेरी मम्मी बहुत बीमार है ..अर्थात तुमसे मन भर गया है।
पापा लड़का ढूंढ रहे है...अर्थात मेरा मामला कही और सेट है।
भइया को पता लग गया है कि मैं तुमसे बात करती हू.. अर्थात ज्यादा उँगली बाजी नहीं
हमारे यहां इंटरकास्ट शादी नहीं करते अर्थात संस्कार नाम की कोई चीज है या नहीँ
तुम मुझे भूल जावो अर्थात पीछा छोड़ो गुरु
और सबसे धांसू
मुझे जिंदा देखना चाहते हो तो मुझसे कभी बात मत करना अर्थात कन्या की शादी किसी अच्छे घर में होने वाली है ।
लौंडों को बिना माल पटाये सीधे सीधे सौदेबाज़ी में लगभक यही हासिल होता था।इसलिए लौंडों में प्यार से पहले माल पटाने की परंपरा का विकास हुआ।
ताकि लड़की भविष्य में "ना" भी बोल दे
उसे पहले, आप उसके हाथ और कंधे तक पहुच जाते थे।
थोड़ी सिरियस और सबकुछ नॉन सिरियस बाते बोल लेते थे।
बाइक नचा के उसके साथ बारिश में घूम आये थे ।
और कई सिनेमाई मौकों पे , चिपक के, उसके हाथ का पकड़ना और झटकना , दोनों का आनन्द ले चुके थे।
ये सबकुछ प्यार के बराबर तो नहीं था ,लेकिन जब दिल टूटे तो जीने का सहारा जरूर था।
आगे इसी क्रम को अवरोही क्रम में समझने की कोशिश करगे, लेकिन अगले एपिसोड में।
चरण एक -
लड़कियो को प्यार से पहले पटाया जा रहा था । शुरुआत लड़की के घर का पता, उसकी प्रिय सहेली और उस छबीले लौंडे की रेकी करने से होती थी, जो दिन रात स्कूल की लड़कीयों से गप्पीयाता था । सहेली और घर का पता तो ठीक है लेकिन उस छबिले लड़के के विषय में थोड़ा विस्तार से समझने की कोशिश करते है।
चाल में लचक, आवाज में मासूमियत, चहेरा साफ सुथरा
लकड़ियों से रुमाल, टिफिन, किताब और नोटबुक बेधड़क मांग सकता था। लेकिन स्कूल में बाकी लड़कों के साथ सू सू जाने और सामूहिक धार मारने में शर्माता था।
लड़कियों के घर जाने में तनिक भी संकोच नहीं करता था और घर वालों में भी अच्छी पैठ रखता था।
( नोट - मम्मी, दिदी से निकट और घर के मर्दो से थोड़ा सा नरबसाया हुआ )
छिनाल लौण्डों को दूर से ही सूंघ लेता था और उनसे दूर ही रहता था क्योंकि उनकी हरकतों से उसे यौनशोषण की बू आती थी।
लगभक हर लड़की लड़के से हसी मजाक और सबके बारे में आशिंक लेकिन