म॒हाँ इन्द्रः॑ प॒रश्च॒ नु म॑हि॒त्वम॑स्तु व॒ज्रिणे॑। द्यौर्न प्र॑थि॒ना शवः॑॥ - ऋग्वेद (1.8.5)
पदार्थ -
(न) जैसे मूर्त्तिमान् संसार को प्रकाशयुक्त करने के लिये (द्यौः) सूर्य्यप्रकाश (प्रथिना) विस्तार से प्राप्त होता है, वैसे ही जो (महान्) सब प्रकार से अनन्तगुण अत्युत्तम स्वभाव अतुल सामर्थ्ययुक्त और (परः) अत्यन्त श्रेष्ठ (इन्द्रः) सब जगत् की रक्षा करनेवाला परमेश्वर है, और (वज्रिणे) न्याय की रीति से दण्ड देनेवाले परमेश्वर (नु) जो कि अपने सहायरूपी हेतु से हमको विजय देता है, उसी की यह (महित्वम्) महिमा (च) तथा बल है॥
------------------------------------------------------------
(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)
(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)
--------------------------------------------------------------
हमारे पॉडकास्ट का अनुसरण करें:
Spotify - https://spoti.fi/3sCWtJw
Google podcast - https://bit.ly/3dU7jXO
Apple podcast - https://apple.co/3dStOfy
Whatsapp पर प्रतिदिन पॉडकास्ट के एपिसोड प्राप्त करें: https://chat.whatsapp.com/CYWFBJR4ZId7tLCE1AKxwc
Telegram पर प्रतिदिन पॉडकास्ट के एपिसोड प्राप्त करें: https://t.me/+yqO2v2CET0o1OGRl
-------------------------------------------
हमसे संपर्क करें:
[email protected]--------------------------------------------