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ए॒वा ह्य॑स्य सू॒नृता॑ विर॒प्शी गोम॑ती म॒ही। प॒क्वा शाखा॒ न दा॒शुषे॑॥ - ऋग्वेद (1.8.8)
पदार्थ -
(पक्वा शाखा न) जैसे आम और कटहर आदि वृक्ष, पकी डाली और फलयुक्त होने से प्राणियों को सुख देनेहारे होते हैं, (अस्य हि) वैसे ही इस परमेश्वर की (गोमती) जिसको बहुत से विद्वान् सेवन करनेवाले हैं, जो (सूनृता) प्रिय और सत्यवचन प्रकाश करनेवाली (विरप्शी) महाविद्यायुक्त और (मही) सबको सत्कार करने योग्य चारों वेद की वाणी है, सो (दाशुषे) पढ़ने में मन लगानेवालों को सब विद्याओं का प्रकाश करनेवाली है। तथा (अस्य हि) जैसे इस सूर्य्यलोक की (गोमती) उत्तम मनुष्यों के सेवन करने योग्य (सूनृता) प्रीति के उत्पादन करनेवाले पदार्थों का प्रकाश करनेवाली (विरप्शी) बड़ी से बड़ी (मही) बड़े-बड़े गुणयुक्त दीप्ति है, वैसे वेदवाणी (दाशुषे) राज्य की प्राप्ति के लिये राज्यकर्मों में चित्त देनेवालों को सुख देनेवाली होती है॥
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(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)
(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)
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ए॒वा ह्य॑स्य सू॒नृता॑ विर॒प्शी गोम॑ती म॒ही। प॒क्वा शाखा॒ न दा॒शुषे॑॥ - ऋग्वेद (1.8.8)
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(पक्वा शाखा न) जैसे आम और कटहर आदि वृक्ष, पकी डाली और फलयुक्त होने से प्राणियों को सुख देनेहारे होते हैं, (अस्य हि) वैसे ही इस परमेश्वर की (गोमती) जिसको बहुत से विद्वान् सेवन करनेवाले हैं, जो (सूनृता) प्रिय और सत्यवचन प्रकाश करनेवाली (विरप्शी) महाविद्यायुक्त और (मही) सबको सत्कार करने योग्य चारों वेद की वाणी है, सो (दाशुषे) पढ़ने में मन लगानेवालों को सब विद्याओं का प्रकाश करनेवाली है। तथा (अस्य हि) जैसे इस सूर्य्यलोक की (गोमती) उत्तम मनुष्यों के सेवन करने योग्य (सूनृता) प्रीति के उत्पादन करनेवाले पदार्थों का प्रकाश करनेवाली (विरप्शी) बड़ी से बड़ी (मही) बड़े-बड़े गुणयुक्त दीप्ति है, वैसे वेदवाणी (दाशुषे) राज्य की प्राप्ति के लिये राज्यकर्मों में चित्त देनेवालों को सुख देनेवाली होती है॥
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