नमस्कार मैं स्मृत आज आपके बीच लेकर आया हूं एक कविता एक विरह गीत जिसे सोहर राग से पिरो के लिखने का प्रयास किया है. ताकि हम अपने माडर्न मन मे धसे देहात को देख सके जो कही भुला हुआ है। तो चलिए इस विरह प्रेम कविता को सुनते है।
रानी तेरी देखो निष्प्राण पड़ी
बीने तेरे देखो झाई, मैं मुरझाई पड़ी
तेरी यादों संग कितना रोये है हम
दिन रेन जागे खोए जोहे, कितना रोये है हम
तेरी खैर ख़बर खोजे पलकें बिछी
भर भर अखियन में अश्रु, काजल कागज पत्तर, तोहे प्रेम लिखे
मेरा जी, मन, जिया, हिया, घट,बढ़ भी तुम
अब तो आवो आ भी जाओ मेरा पूरा अधूरा मेरा शेष भी तुम
मेरे अर्पण तर्पण जो दर्पण हो तुम
ओ साजन जी दिल के निवासी धकधकाहट हो तुम