शरीरसंरचना जान लेनेके उपरान्त वेदान्त समझना सरल हो जाता है।
*पहले स्थूल शरीर को जानेंगे और यह बोध होगा कि यह शरीर और इसके अवयव मैं नहीं हूँ तथा इसकी क्रियाओं का कर्ता भी मैं नहीं हूँ, यह तो सत रज तम तीनों गुण अपना अपना कार्य कर रहे हैं। फिर सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के सम्बन्ध में भी ऐसा ही बोध होगा।
* व्यावहारिक जीवन में सत रज तम के प्रधानता की पहचान।
* गुणोंकी सृष्टि बुद्धि करती है। आत्मा इस कार्यसे अलग ही रहता है। वह साक्षी बनकर देखता रहता है।
* सत आदि गुण आत्मा को नहीं जानते, किन्तु आत्मा इनको जानता है।
*बुद्धि का घनिष्ठ सम्बन्ध मन के साथ होता है। गुणों के साथ नहीं।
* बुद्धि सारथि, मन बागडोर, इन्द्रियां अश्व हैं।
* आत्मसाक्षात्कार होने पर सत रज तम - तीनों गुण नष्ट हो जाते हैं।
* चिज्जड़ ग्रन्थि क्या है? यह ग्रन्थि है ही नहीं , केवल इसका भ्रम है।
"जड़ चेतनहि ग्रन्थि पडि़ गयी। जदपि मृखा छूटत कठिनई।।"