दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

योगवासिष्ठ, 2.8 । भाग्य केवल भ्रम है। इस भ्रमका अधिष्ठान पुरुषार्थ है।


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योगवासिष्ठ,2.8 । ग्रह इत्यादि स्वतंत्ररूप से कुछ नहीं करते, वे केवल आपके पूर्वपुरुषार्थ के फल की सूचना देते हैं। अर्थात् वे पुरुषार्थके फलके वाचक अथवा दूत हैं। भाग्य केवल भ्रम है, उसी प्रकार जैसे अज्ञानवश रस्सीमें सर्पका भ्रम हो जाता है। भाग्यके भ्रमका अधिष्ठान पुरुषार्थ ही है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati