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बात – मुलाकात के इस एपिसोड में पिछले महीने चर्चा में रहे बकस्वाहा के जंगल और हीरा खनन के मुद्दे को समझने की कोशिश की गयी है।
बकस्वाहा, मध्य प्रदेश में छतरपुर जिले की एक तहसील है। यहाँ हीरा का एक भण्डार मिला है। अनुमान है कि यहाँ 3.4 करोड़ कैरेट के हीरे हैं। लेकिन इस हीरे को पाने के लिए कम से कम 2.15 लाख छोटे-बड़े पेड़ काटे जाने की ज़रूरत होगी।
हीरे के इस भण्डार को बंदर डायमंड ब्लॉक कहा जाता है। 2019 में हुई एक नीलामी के तहत यह डायमंड ब्लॉक बिरला समूह की एक कंपनी एसेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को खनन लीज़ पर मिला है। इससे पहले यहाँ रियो टिंटों जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी हीरे की खोज कर रही थी।
पेड़ों की कटाई से संबंधित खबरों ने प्रमुखता से मध्य प्रदेश के अखबारों में जगह पाई। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों को ऑक्सीज़न के लिए परेशान होते देखा गया। इन खबरों ने बकस्वाहा और उसके आस-पास के युवाओं को परेशान किया। उन्हें ऐसा लगा कि ऑक्सीज़न के प्राकृतिक स्रोतों यानी पेड़ों की रक्षा की जाना चाहिए। इसी सोच से सेव बकस्वाहा फॉरेस्ट नाम के यह अभियान अचानक सुर्खियों में आ गया।
इस एपिसोड में हमने उन युवाओं से बात की जो इस अभियान में शुरुआत से जुड़े हैं। संकल्प जैन और निदा रहमान से बात चीत करके हम इस अभियान के कुछ पहलुओं को जानने की कोशिश की।
स्थानीय लोगों और स्थानीय पत्रकार से भी बात चीत की ताकि इस अभियान को लेकर जमीनीन स्थिति का जायजा लिया जा सके। शिवेन्दा शुक्ला, जगदीश यादव ने हमें इस बारे में बताया।
लेकिन इस अभियान के अलावा इस परियोजना और नीलामी पर भी कई सवाल हैं। ये सवाल कानूनी हैं। जिस जंगल को नीलाम किया गया है उसकी कानूनी स्थिति क्या है? इसके बारे में हमने एडवोकेट अनिल गर्ग से बात की और इससे जुड़े कई पहलुओं को समझा।
बकस्वाहा का मामला राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी में भी उठाया गया है। इस संबंध में हमने एक याचिकाकर्त्ता पुष्पराग से भी बात की।
इस परियोजना के कई अन्य पहलुओं और इसके खिलाफ चल रहे अभियान को मुकम्मल तौर पर समझने के लिए छतरपुर वन मण्डल के वन अधिकारियों से भी बात की लेकिन उन्होंने अपना आधिकारिक पक्ष रखने से इंकार कर दिया।
इस शो का संचालन, सत्यम श्रीवास्तव ने किया जो पंद्रह सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं और सामयिक विषयों पर लिखते हैं।
See sunoindia.in/privacy-policy for privacy information.
बात – मुलाकात के इस एपिसोड में पिछले महीने चर्चा में रहे बकस्वाहा के जंगल और हीरा खनन के मुद्दे को समझने की कोशिश की गयी है।
बकस्वाहा, मध्य प्रदेश में छतरपुर जिले की एक तहसील है। यहाँ हीरा का एक भण्डार मिला है। अनुमान है कि यहाँ 3.4 करोड़ कैरेट के हीरे हैं। लेकिन इस हीरे को पाने के लिए कम से कम 2.15 लाख छोटे-बड़े पेड़ काटे जाने की ज़रूरत होगी।
हीरे के इस भण्डार को बंदर डायमंड ब्लॉक कहा जाता है। 2019 में हुई एक नीलामी के तहत यह डायमंड ब्लॉक बिरला समूह की एक कंपनी एसेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को खनन लीज़ पर मिला है। इससे पहले यहाँ रियो टिंटों जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी हीरे की खोज कर रही थी।
पेड़ों की कटाई से संबंधित खबरों ने प्रमुखता से मध्य प्रदेश के अखबारों में जगह पाई। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों को ऑक्सीज़न के लिए परेशान होते देखा गया। इन खबरों ने बकस्वाहा और उसके आस-पास के युवाओं को परेशान किया। उन्हें ऐसा लगा कि ऑक्सीज़न के प्राकृतिक स्रोतों यानी पेड़ों की रक्षा की जाना चाहिए। इसी सोच से सेव बकस्वाहा फॉरेस्ट नाम के यह अभियान अचानक सुर्खियों में आ गया।
इस एपिसोड में हमने उन युवाओं से बात की जो इस अभियान में शुरुआत से जुड़े हैं। संकल्प जैन और निदा रहमान से बात चीत करके हम इस अभियान के कुछ पहलुओं को जानने की कोशिश की।
स्थानीय लोगों और स्थानीय पत्रकार से भी बात चीत की ताकि इस अभियान को लेकर जमीनीन स्थिति का जायजा लिया जा सके। शिवेन्दा शुक्ला, जगदीश यादव ने हमें इस बारे में बताया।
लेकिन इस अभियान के अलावा इस परियोजना और नीलामी पर भी कई सवाल हैं। ये सवाल कानूनी हैं। जिस जंगल को नीलाम किया गया है उसकी कानूनी स्थिति क्या है? इसके बारे में हमने एडवोकेट अनिल गर्ग से बात की और इससे जुड़े कई पहलुओं को समझा।
बकस्वाहा का मामला राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी में भी उठाया गया है। इस संबंध में हमने एक याचिकाकर्त्ता पुष्पराग से भी बात की।
इस परियोजना के कई अन्य पहलुओं और इसके खिलाफ चल रहे अभियान को मुकम्मल तौर पर समझने के लिए छतरपुर वन मण्डल के वन अधिकारियों से भी बात की लेकिन उन्होंने अपना आधिकारिक पक्ष रखने से इंकार कर दिया।
इस शो का संचालन, सत्यम श्रीवास्तव ने किया जो पंद्रह सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं और सामयिक विषयों पर लिखते हैं।
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