दुःख क्यों होता है? बाहर की चीजोंसे दुःख नहीं होता। दुःख सुख मनमें है और मनका भ्रम है। मनके द्वारा बाहरकी चीजों से हम अपना जो सम्बन्ध जोड़ लेते हैं, वह दुःख देता है। वस्तुको जब तक हमने अपना नहीं माना तब तक वह न तो सुख देता है न दुःख। जब उसे हम अपना मान लिये तो वह सुखद दुःखद हो जाता है। कोई भी व्यक्ति सम्पत्ति की रक्षाकके लिये संघर्ष नहीं करता । अपितु, सम्पत्ति उसकी हो जाय अथवा उसकी बनी रहे, इसलिये संघर्ष करता है। कोई भी प्राकृत वस्तु यहां तक कि हमारी इन्द्रिय भी दुःख का कारण नहीं है। बुद्धि भी सुख दुःख नहीं देती, वह सुख दुःखको केवल समझती है। दुःख का कारण केवल अविद्या है। अविद्याको व्यावहारिक भाषामें नासमझी कह सकते हैं। अनात्म को आत्म समझ लेना दुःखका कारण है।