।श्री हरिकथा।

4....श्रीमद् भागवत नवनीत भाग–4.


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4. श्री हरि शरणागति। भागवत नवनीत भाग 4 श्रीमद् भागवत माहात्म्य। सच्चिदानंद स्वरूप भगवान श्री कृष्ण का वंदन। अनेक ग्रंथों में महात्मा की कथा आती है। खास करके पद्मा पुराण के अंदर आए हुए महात्मे की कथा वक्ता कहे ऐसी व्यास नारायण की आज्ञा है। व्यास नारायण की आज्ञा के अनुसार पद्मपुराण अंतर्गत महात्मा की कथा को आरंभ करते हैं। सच्चिदानंद रूपाय विश्वत‌्पत्यादि हेतवे।
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुम:।।
कथा के आरंभ में भगवान श्री कृष्ण के चरणों में वंदन करते हैं। दर्शन के बाद वंदन होता है। जिसको भगवान का दर्शन नहीं होता है, वह किसका वंदन करेगा?! अतः मन से दर्शन करो, भगवान के चरणों में भाव पूर्वक वंदन करो। कोई भी कार्य आप आरंभ करो तो पहले भगवान के चरणों में वंदन करो। जीव में शक्ति अल्प है। जीव की बुद्धि भी अल्प है। अल्फा शक्ति होने पर भी यह जीव शक्ति का विनाश बहुत करता है इससे जीव दुखी होता है और उसकी हार हो जाती है किंतु जिसको भगवान की शक्ति मिलती है भगवान की शक्ति प्राप्त करके जो काम करता है उसकी कभी हार नहीं होती इसलिए भाव पूर्वक भगवान के चरणों में वंदन करो।
ऐसा नियम बना लो की कोई भी काम करने से पहले अपने भगवान का दर्शन करो उन्हें वर्णन करो बाहर जाना हो तो भगवान का वंदन करके बाहर जाओ बहुत से वैष्णव तो ऐसे हैं की भगवान को ऐसा कहते हैं कि मैं आपका ही काम करने जा रहा हूं। भक्ति में पैसे की जरूरत है पैसा केवल भोग का ही साधन नहीं है। पैसे के बिना भक्ति नहीं होती अतः प्रवृत्ति भी परमात्मा के लिए करो बाहर जाओ तब भगवान का वंदन करके जाओ काम करो तब भी भगवान को भूलना नहीं बाहर से जब घर में आओ तब हाथ पांव धोकर शुद्ध होकर प्रथम भगवान का दर्शन करो और भगवान को वंदन करके कहो यह दास आपकी सेवा में आया है आप मेरे मालिक हैं आप इतना भी करोगे तो जीवन सुधरेगा।
कितने ही लोग जब बाहर से घर में आते हैं तो उनको सर्वप्रथम पत्नी का दर्शन करने की इच्छा होती है अच्छी बात है पर पत्नी ना दिखाई पड़े तो व्याकुल हो जाते हैं अपने बच्चों से पूछते हैं तेरी मां कहां गई है अरे वह क्या कोई भाग जाने वाली थी आ जाएगी घर में आकर प्रथम भगवान का दर्शन करो घर के मालिक भगवान है श्री कृष्णाय वयं नुम:। कथा के आरंभ में वंदन करो केवल श्री कृष्ण का ही नहीं अपितु श्री राधा जी के साथ विराजमान श्री कृष्ण का वंदन करो।
सनातन धर्म में शक्ति के साथ परमात्मा की भक्ति होती है कितने ही बिनानी लोग निर विशेष ब्रह्मा का का ध्यान करते हैं ठीक है किंतु ब्रह्मा जब शक्ति विशिष्ट होता है तब दया आती है शक्ति विशिष्ट ब्रह्मा की पूजा होती है संत लोग तो ऐसा कहते हैं श्री राधे के बिना कृष्णा आधे हैं।
श्री सीता जी रावण की लंका में विराजमान है रामचंद्र जी को सीता जी का वियोग हुआ है सीता भी होगी राम की कोई पूजा नहीं करता राम जब रावण को मारते हैं श्री सीता जी के साथ स्वर्ण सिंहासन पर विराजे है ब्रह्मा जब शक्ति विशिष्ट होता है तभी उसकी पूजा होती है सनातन धर्म में शक्ति विशिष्ट परमात्मा की पूजा है
जगत के आधार श्री कृष्ण है श्री कृष्ण की आधार श्री राधा है जगत को आनंद देने वाले श्री कृष्ण है जीव जब मन से श्री कृष्ण का स्पर्श करता है तब आनंद मिलता है आनंद ही श्री कृष्ण है जीव को संसार में सुख मिलता है आनंद नहीं मिलता है आनंद तो जीव जब परमात्मा को मिलता है स्पर्श करता है तब मिलता है आनंद देने वाले श्री कृष्णा है जगत को आनंद श्री कृष्णा देते हैं। और श्री कृष्ण को आनंद देने वाली श्री राधा जी हैं भागवत में ऐसा वर्णन आया है कि श्री कृष्ण को कभी-कभी क्रोध आता है भगवान क्रोध करते हैं किंतु श्री राधा जी को कभी भी जीवन में क्रोध आया ही नहीं क्रोध क्या होता है यह श्री राधा जी जानती नहीं है वह तो दया की मूर्ति है प्रेम की मूर्ति हैं उन्हें सभी पर दया आती है।
भगवान दयालु है यह बात सत्य है भगवान कभी-कभी निष्ठुर भी हो जाते हैं भगवान कभी कभी क्रोध करते हैं भगवान सजा भी करते हैं भगवान कब सजा करते हैं
भगवान कृपा करके जीव को धन देते हैं जीव को घर में अनुकूलता कर देते हैं ताकि अनुकूल परिस्थितियों में वह भगवान की ज्यादा भक्ति करें ज्यादा भक्ति करने के लिए ज्यादा परोपकार करने के लिए भगवान जीव को अनुकूलता कर देते हैं किंतु वह जीव ऐसा दुष्ट है कि सब प्रकार की अनुकूलता मिलने पर भी वह ज्यादा भक्ति नहीं करता है वह ज्यादा सुख भोगता है अतिशय भक्ति करने के लिए भगवान अनुकूलता प्रदान कर देते हैं अनुकूल परिस्थिति में मर्यादा छोड़कर जीव जब अति सुख भोगता है तब भगवान को क्रोध आता है अब दया नहीं अब सजा है अब मैं इसको सजा करूंगा भगवान सजा भी करते हैं भगवान को क्रोध आता है भगवान क्रोध करके जब सजा करते हैं तब श्री राधा जी भगवान को समझाती है क्रोध म
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।श्री हरिकथा।By yashodama