546वीं कडी़ । रामचरित मानस रूपी सरोवर का वर्णन (भाग 2)
*रामकथा के वक्ता ही इस सरोवर के रखवाले हैं, और इसके श्रोता इस सरोवर के श्रेष्ठ देवता हैं।
*कथा में अपदूषण न मिलने पाये। इससे बचाने की वक्ता की जिम्मेदारी तो है ही, श्रोता को वक्ता से ऊंचा स्थान दिया है। वक्ता को रखवाला तो श्रोता को देवता कहे।
*गन्दे जल में रहने वाले जीव इस स्वच्छ सरोवर में नहीं रहते
बगुला इत्यादि जैसे आडम्बरी इस सरोवर के निकट नहीं आते।
*इस सरोवर के पास वही निश्छलहृदय भक्त आते हैं जिन पर राम की कृपा होती है, जिनमें श्रद्धा होती है और जिनको सन्तों का साथ मिलता है -
"आवत एहि सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई।।"
"जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन्ह कर साथ ।
तिन्ह कहँ मानस अगम अति, जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ।।38।।"
"जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नींद जुडा़ई होई।।"
किन्तु,
"सकल बिघ्न ब्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपा बिलोकहिं जेही।।"