548वीं कडी़ । ज्ञान का स्वरूप,ज्ञानके साधन और ज्ञानकी सात भूमिकायें।, अपरोक्षानुभूतिः 24-28, वि.च. 15/244-48,13/221-30। पिछली कडी़ की प्रश्नोत्तरी के क्रम में - *
26. ज्ञानका स्वरूप क्या है?
सूत्र रूप में कहें तो जीव और ब्रह्म के अभेदकी दृढ़ प्रतीति ही ज्ञान का स्वरूप है। अपरोक्षानुभूतिः ग्रन्थके श्लोक 24 से 28 में आचार्य शङ्कर भगवत्पाद के वचनों का यही सार है।
"ब्रह्मैवाऽहं समः शान्तः सच्चिदानन्द लक्षणः।
नाऽहं देहो ह्यसद्रूपो ज्ञानमित्युच्च्यते बुधैः।।24।।
निर्विकारो निराकारो निरवद्योऽहमव्ययः।
नाहं देहो ह्यसद्रूपो ज्ञानमित्युच्च्यते बुधैः।।25।।
निरामयो निराभासो निर्विकल्पोऽहमाततः।
नाऽहं देहो ह्यसद्रूपो ज्ञानमित्युच्च्यते बुधैः।।26।।
निर्गुणो निष्क्रियो नित्यो नित्यमुक्तोऽहमच्युतः।
नाऽहं देहो ह्यसद्रूपो ज्ञानमित्युच्च्यते बुधैः।।27।।
निर्मलो निश्चलोऽनन्तः शुद्धोऽहमजरोॅमरः।
नाऽहं देहो ह्यसद्रूपो ज्ञानमित्युच्च्यते बुधैः।।28।।"
*27. ज्ञानके साधन क्या हैं?
ज्ञानके 9 अन्तरंग और 2 बहिरंग साधन हैं।
विचार चन्द्रोदय के अनुसार,
○एक साक्षात् अन्तरङ्ग साधन है - ब्रह्मनिष्ठ गुरुके मुखसे महावाक्य के अर्थ का श्रवण। और
○ आठ परम्परागत अंतरंग साधन हैं - 1.विवेक, 2.वैराग्य, 3.षट्सम्पत्ति (शम दम उपरति तितिक्षा श्रद्धा समाधान), 4.मुमुक्षुता,5.तत् पद और त्वं पदके अर्थका शोधन 6.श्रवण 7. मनन, 8.निदिध्यासन।
○दो बहिरंग साधन हैं - निष्काम कर्म और निष्काम उपासना।
○ज्ञानकी सात भूमिकाओं (अर्थात् 7 स्तर) - 1.शुभेच्छा , 2.सुविचारणा 3.तनुमानसा 4.सत्वापत्ति 5. असंसक्ति,6.पदार्थाभाविनी और 7.तुरीया की परिभाषा। इन सातों भूमिकाओं के विवेचन के लिये पिछले एपिसोड 510 और 512 का भी श्रवण करें।