549वीं कडी़ । श्रीरामचरित मानस रूपी सरोवर/सरयू का वर्णन (भाग 3)
जो इस रामचरित मानसरूपी सरोवर में स्नान कर लेता है , वह दैहिक दैविक भौतिक तीनों प्रकार के तापों से संतप्त नहीं होता।
जो इस सरोवर में स्नान करना चाहे, वह मन लगाकर सत्संग करे।
जैसे मानसरोवर से सरयू नदी निकली उसी प्रकार कवि के मानस में जब सत्संग इत्यादि से रामकथा का आनन्द उमडा़ तो कवितारूपी सरयू बह चली।
श्रोता त्रिविध समाज पुर, ग्राम नगर दुहु कूल।
संत सभा अनुपम अवध, सकल सुमंगल मूल।।
यह शरीर ही नहीं, संसारके श्रम का हरण करने वाली है और समस्त प्रकार के दुःख दारिद्र का शमन करने वाली है।
भव श्रम सोषक तोषक तोषा।
समन दुरित दुख दारिद दोषा।।