कल थी काशी, आज है बनारस

84 घाटों मे काशी ke उत्तर में स्थित, आदि केशव घाट और मंदिर ki आनंद दायी कहानी


Listen Later

काशी दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ है. हिंदुओं के लिए. एक अति प्राचीन और अमरत्व का गुण रखने वाले इस दिव्य अमर पुरी नगरी काशी में भी पांच महत्वपूर्ण तीर्थ हैं जिनके भ्रमण और दर्शन से काशी की तीर्थ यात्रा पूर्ण हो जाती है. आज की कहानी एक ऐसे घाट की जो संगम स्थान है और जहाँ श्री हरि विष्णु ने स्नान किया. अपनी भर्या और मित्र वरुण के साथ श्री हरि काशी की यात्रा पर आये. यहाँ आने का प्रयोजन यही था कि यह काशी जो स्वर्ग का प्रकाश रुप है वो ज्ञान और धर्म के प्रकाश को भी अपने अंदर समेट सके. विष्णु जी ने काशी के जिस संगम स्थल पर अपने मंगलमय पग पखारे यानि धोये वह संगम था वरुणा और गंगा का संगम स्थल. जिसे तब 'पादोदक' नाम मिला. यहाँ पर श्री हरि ने लक्ष्मी जी के साथ रमण किया. फिर श्री हरि ने इस घाट पर एक मूर्ति का निर्माण किया. और उसकी प्राणप्रतिष्ठा की. यहीं घाट 11 वीं सदी में गहड़वाल राजाओं का आस्था स्थल रहा. इसे वो वेदस्व घाट कहते थे. आज इसे आदि केशव घाट कहते हैं. यह पूर्णतः श्री हरि को समर्पित घाट हैं. 1780 में मराठा राजवंश के राजा सिंधिया के दिवान ने इसको पुनः निर्माण कराया. यह अति प्राचीन और दिव्य घाट पर अब बन रहा वरुणा कोरिडोर. ताकि इसके महत्व को जनता और लोगों में पुनः स्थापित किया जा सके. लखनऊ की गोमती नदी की तरह वरुणा नदी को पुनः संरक्षित और साफ करने का प्रयास जारी है. काशी के बदलते स्वरूप में इस घटा का रुप भी बदलेगा. पर इसकी पहचान श्री हरि से जुड़ी रहेगी. आदि केशव पेरुमाल मंदिर और ज्ञान केशव रुप में भगवन सबको ज्ञान और धर्म पथ पर चलने का मार्ग बताते रहेंगे. लोग यहाँ श्रद्धा सुमन और पाप को त्याग करने सदी के अंत तक आते रहेंगे. ईश्वर में आस्था बनी रहेगी. सदमार्ग और सरल जीवन का ज्ञान इस काशी से पूरे विश्व में बहता रहेगा. जीवन दायनी नदियों को ईश्वर केवल भारत में ही कहा जाता हैं. नदियों को मां सा सम्मान केवल भारत और काशी ही देता है. क्योंकि हमारे पूर्वज जानते थे कि नदियाँ ही मानव जीवन का स्त्रोत हैं. अन्न, जल, जीवन सब इन नदियों से मिलता है. इसलिए काशी के घाट आज भी हर दिन इन नदियों को श्रद्धा सुमन और पूजन कर धन्यवाद कहते हैं. यह घाट जिनपर ना जाने कितने जीवन और युग बीत गये यहाँ आना और उन चिंहो को निहारना अदभुत एहसास देता है. काशी की हवा में भक्ति का नशा है. जो भांग सा चढ़ता. जहाँ पर दिमाग शुन्य में विलीन हो जाता है. काशी तर्क पर नहीं तजुर्बा पर चलती है. काशी कला और विज्ञान की जन्मभूमि है. यहाँ से विज्ञान जनमा है. यह विज्ञान जो तथ्यों पर चलता है उसके जन्म के तथ्य उड़ते हैं काशी में. गणित और विज्ञान को जन्म देने वाली नगरी काशी को बारंबार प्रणाम है. इस काशी के रचनाकार को दंडवत् प्रणाम है. गंगा और उनकी सहायक नदियों को प्रणाम है. काशी ज्ञान की गंगा हैं लोग मन भर कर आते हैं और ज्ञान के पारस को देख कर महसूस कर बस पगला जाते हैं. उनके शब्द इसकी व्याख्या नहीं कर पाते इसलिए बस भोले भोले चिलाते हैं. जोर से दिल खोल कर बोलिये नम: पार्वती पतये हर हर महादेव... ॐ शांति...
...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh